The smart Trick of Shodashi That No One is Discussing
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कामपूर्णजकाराख्यसुपीठान्तर्न्निवासिनीम् ।
चक्रेश्या प्रकतेड्यया त्रिपुरया त्रैलोक्य-सम्मोहनं
आस्थायास्त्र-वरोल्लसत्-कर-पयोजाताभिरध्यासितम् ।
The Devas then prayed to her to wipe out Bhandasura and restore Dharma. She's considered to own fought the mother of all battles with Bhandasura – some scholars are with the perspective that Bhandasura took a variety of types and Devi appeared in several varieties to annihilate him. Last but not least, she killed Bhandasura Along with the Kameshwarastra.
साशङ्कं साश्रुपातं सविनयकरुणं याचिता कामपत्न्या ।
यह उपरोक्त कथा केवल एक कथा ही नहीं है, जीवन का श्रेष्ठतम सत्य है, क्योंकि जिस व्यक्ति पर षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी की कृपा हो जाती है, जो व्यक्ति जीवन में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है, क्योंकि यह शक्ति शिव की शक्ति है, यह शक्ति इच्छा, ज्ञान, क्रिया — तीनों स्वरूपों को पूर्णत: प्रदान करने वाली है।
सर्वज्ञादिभिरिनदु-कान्ति-धवला कालाभिरारक्षिते
Shodashi’s mantra aids devotees release earlier grudges, discomfort, and negativity. By chanting this mantra, people cultivate forgiveness and psychological release, selling assurance and the opportunity to move ahead with grace and acceptance.
भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और read more मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।
वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।
यत्र श्रीत्रिपुर-मालिनी विजयते नित्यं निगर्भा स्तुता
ह्रीं ह्रीं ह्रीमित्यजस्रं हृदयसरसिजे भावयेऽहं भवानीम् ॥११॥
Lalita Jayanti, a big Competition in her honor, is celebrated on Magha Purnima with rituals and communal worship events like darshans and jagratas.
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५॥